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नरेन्द्र जैन की कविताएं और असद ज़ैदी की टिपण्णी

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वरिष्ठ कवि नरेन्द्र जैन के नए कविता संग्रह `चौराहे पर लोहार` (आधार प्रकाशन) से कुछ कविताएं

चौराहे पर लोहार

विदिशा का लोहाबाज़ार जहाँ से शुरू होता है
वहीं चौराहे पर सड़कें चारों दिशाओं की ओर
जाती हैं
एक बांसकुली की तरफ़
एक स्टेशन की तरफ़
एक बस अड्डे
और एक श्मशानघाट
वहीं सोमवार के हाट के दिन
सड़क के एक ओर लोहार बैठते हैं
हँसिये, कुल्हाड़ी, सरौते और
खुरपी लेकर
कुछ खरीदने के लिये हर आने-जाने वाले से
अनुनय करते रहते हैं वे
शाम गये तक बिक पाती हैं
बमुश्किल दो-चार चीज़ें
वहीं आगे बढ़कर
लोहे के व्यापारी
मोहसीन अली फख़रूद्दीन की दुकान पर
एक नया बोर्ड नुमायां है
`तेज़ धार और मज़बूती के लिये
ख़रीदिये टाटा के हँसिये`
यह वही हँसिया है टाटा का
जिसका शिल्प वामपंथी दलों के चुनावी
निशान
से मिलता जुलता है
टाटा के पास हँसिया है
हथौड़ा है, गेहूँ की बाली और नमक भी है
चौराहे पर बैठे लोहार के पास क्या है
एक मुकम्मिल भूख के सिवा?
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जोधपुर डायरीसीरीज से एक कविता

क़िले में अब
तोप, तमंचों, बंदूकों
तलवारों, गुप्तियों
बघनखों, लाठियों और
बल्लमों की भरमार है
महाराजा की शान में
पेश की गयी तलवार पर
अंकित है प्रशस्ति का वाक्य
और लिखा है नाम
उसे पेश करने वाले ग़ुलाम का
क़िले के झरोखों से उड़ता है
पक्षियों का गोलबंद झुंड
और तलवारों में कंपकंपी पैदा करता
क़िले के पार चला जाता है
क्यूरियो शॉप में
290 वर्ष पुरानी शराब की ख़ाली बोतल का दाम रुपये
दो हजार एक सौ ठहरा
लुभाने के लिए बहुत हैं अतीत के नाचते खण्डहर.
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अतियथार्थ

जैसे भागते-भागते किसी तेज़ गति के संग
किसी के हाथ से छूट जाता है
रेल का डिब्बा
या खाई से गिरते हुए नीचे
छूट जाता है रस्सी का अंतिम सिरा
या
विस्फोट के मुहाने तक
पहुँचते ही बुझ जाती है दियासलाई
हममे से
हर किसी के हाथ से
कुछ न कुछ छूट गया है
कहीं रखी होती है
ऐसी भी थाली
जिस पर रोटी का चित्र बना होता है
एक भूखे आदमी के हाथ का कौर
वहीं छूट जाता है हाथ से
इस काली सफ़ेद पुरानी तस्वीर में
यह शख़्स
ऐसा दिखलाई दे रहा
जैसे अभी-अभी भरपेट खाकर
थाली से उठा ही हो
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इधर

(विध्वंस : बाबरी मस्ज़िद)
कुछ कालिख
यहाँ वहाँ हाथों पर
चेहरे पर
शब्दों पर
कुछ कालिख
साज़ों पर बजती धुन पर
इधर सबसे ज़्यादा
आँखें चुरायी बच्चों से मैंने
हुआ तब्दील
शर्म के
जीते जागते जीवाश्म की शक्ल में
मार गया पाला
इधर आवाज़ को
इधर हुआ शर्मसार
दिवंगत् कवियों के समक्ष
इधर
और ज़्यादा
थक गया मैं
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विदिशा डायरी सीरीज से एक कविता

जिन घरों में बड़े भाई की कमीज़
छोटे भाई के काम आ जाती है
इसी तरह जूते, चप्पल और पतलून तक
साल-दर साल उपयोग में आते रहते हैं
वे कभी-कभार आते हैं बांसकुली
पतलून कमर से एक इंच छोटी करवाने
या घुटने पर फटे वस्त्र को रफू करवाने
अक्सर इन घरों में यदि पिता हुए तो
वे बीसियों बारिश झेल चुकी जैकिट पहनते हैं
और फ़लालैन की बदरंग कमीज़
जिन्हें सूत के बटन भी अब मयस्सर नहीं होते
रफ़ूगर की दुकान से
दस कदम आगे रईस अहमद
पुराने वाद्य-यंत्रों के बीच बैठे
क्लेरनेट पर बजाते रहते हैं कोई उदास धुन
यह धुन होती है कि
अपने चाक वक़्त को रफ़ू कर रहे होते हैं वे
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इससे पहले 2010 में आधार प्रकाशन से ही छपे नरेन्द्र जैन के कविता संग्रह `काला सफ़ेद में प्रविष्ट में होता है` की कविताएं और उस संग्रह पर छपी वरिष्ठ कवि असद ज़ैदीकी टिपण्णी भी याद आ रही हैं। इस पोस्ट के साथ वह टिपण्णी भी यहां दे रहा हूं। -

`नरेन्द्रजैनकी कविता को हम क़रीब 35 साल से जानते हैं. वक़्त के साथ इस जान-पहचान में पुख्तगी भी आई है. वह अपनी पीढ़ी के उन चंद खुशनसीब कवियों में हैं जिनकी कविता ने अपने समय की रचनाशीलता से एक ऐसा पायेदार रिश्ता बनाया है जिसमें कभी कोई अधीरता या बेजा आग्रह नहीं रहा : एक रचनात्मक तन्मयता, फ़िक्रमंदी लेकिन अपनी कविता के कैरियर से एक हद तक बेनियाज़ी नरेन्द्र का वह दुर्लभ गुण है जो उन्हें अपने समकालीनों के बीच आदर और प्यार का पात्र बनाता है।

नरेन्द्र जैन सहज ही अपनेकाव्यव्यक्तित्वऔरअनुभव-जगतकीसम्पूर्णताकेसाथअपनीकवितामेंमौजूदरहतेहैं.हरनईकविताकेलिएनुक्ताढूँढ़नेऔरउसकेइर्द-गिर्दअपनीकाव्यकलाकोमाँजने (याहथियारकीतरहभाँजने) की ज़रूरतउन्हेंकभीनहींहोती. एकआंतरिकसंगीत, अक्षयरागदारीऔरनागरिकहयादारीकीलौउनकीकविताओंमें हरदममौजूद रहतीहै. अपनेहमअस्रोंकेबीचउनकीशख्सियतइन्हींचीज़ोंकीजुस्तजूसेबनीहै. वहअपनीगहन निजताऔरआन्तरिकताकोभीअपनेनागरिकऔरसामाजिकमनकेमाध्यमसेहीपानेकेहामीहैं. उनकीकविताएँअपनेतग़ाफ़ुलमेंभीबहुतसीचीज़ोंकीख़बरएकसाथरखतीहैं समाज, राजनीति, देश-विदेश, आसपास, कविका अंतर्मन. यहाँऐसीसम्पूर्णताहैजिसकासम्बन्धलिखेजानेसेकम, जिएजानेऔरघटितहोनेसेज़्यादाहै.ज़िम्मेदारीऔरअकेलापन. दरअसलतनहाईकीसच्चीगरिमाऔरअर्थवत्ताभीऐसीहीकवितामेंरौशनहोतीहै.

आजकविताएकभयावहसरलीकरणकेदौरसेगुज़ररहीहैऔरयहसरलीकरणमोटीसमझयाठसपनवाला सरलीकरणनहीं, एक नैतिक और राजनीतिक सरलीकरण है.चूंकिघुटन, पीड़ा, दुःखऔरक्रोधसे, अन्यायऔर विषमताकेप्रतिकारसे, अंतर्विरोधकीमारसेबचकरकवितानहींलिखीजासकती, औरलिखीजाएतोसमकालीन कवितानहींहोसकती, इसलिएयथास्थितिवादीरचनाकारोंनेवास्तविकचुनौतियोंऔरअंतर्विरोधोंकीजगह काल्पनिकचुनौतियोंऔरअंतर्विरोधोंकीभूलभुलैयाँरचनीशुरूकीहै. बिनाविद्रोहकिए, बिनाउसविद्रोहकीक़ीमत चुकानेकोतैयारहुएयेलोगविद्रोहऔरप्रतिरोधकाएकरुग्णरोमांटिकऔरउत्तर-आधुनिकतावादीसंसारकलाओंमें रचरहेहैं. अबमुठभेड़औरप्रतिरोधकीजगह 'जेस्चर' और 'मेटाफर' नेलेलीहै. देखतेदेखतेआजऐसेकविकाफ़ी तादादमेंइकट्ठेहोगएहैंजोइसतरीक़ेकोहीअसल 'तरीक़ा'औरसच्चा 'सिलसिला' मानतेहैं. इसपरिदृश्यमेंनरेन्द्र जैनकीकविताक्लैसिकलप्रतिरोधकीबाख़बरकविताहै, जहाँअत्याचारीकाचेहरादिखाईदेताहै, औरकविजिन पीड़ितोंकीहिमायतकररहाहैउनकेचहरेभीदिखाईदेतेहैं. उनकीकवितानेअपनापैनाराजनीतिकफ़ोकसखोया नहींहै, बल्किउसेमामूलीजीवनकीतरहजियाहै.

नरेन्द्रकीकविताएकराजनीतिकविभीषिका, विराटदुर्घटना, आपातकालीनपरिस्थिति,अर्जेंटअपीलयाख़तरेऔर चेतावनीकेलिएजागनेवालीकवितानहींबल्किदैनिकजीवनमेंराजनीतिकचेतनाऔरव्यवहारकेदाख़िलहोने,जज़्बहोनेऔरज़ाहिरहोनेकीकविताहै. उनकासरोकारउसरोज़मर्रासेहैजहाँ 'राजनीतिक' और 'ग़ैर-राजनीतिक' की कोईविभाजकरेखानहींहोती, औरजहाँराजनीतिअलगशख्सियतकेसाथ, मुखौटालगाकर, खुदअपनीपैरोडी बनकरनहीं, मानवीयअनुभवकेअनिवार्यपहलूकीतरहआतीहै.

नरेन्द्रनेअपनी वामपक्षीय प्रतिबद्धताकोबोझकीतरहनहींढोया; उसेअपनेरचनात्मकऔरनैतिकजीवनमेंजज़्ब कियाहैऔरएकगहरीज़िम्मेदारीसेउसेबरताहै. उनकेपासमुक्तिबोधकेउसमशहूर सवाल का जवाब है.` -असद ज़ैदी

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आधार प्रकाशन, एससीएफ 267, सेक्टर-16 पंचकूला 134113 (हरियाणा)


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