त्रिपुरा: यह किसकी हार है? - धीरेश सैनी
हिंदुस्तान का नैशनल मीडिया त्रिपुरा का जिक्र पहले शायद ही कभी करता हो लेकिन एक-दो साल से वह भारतीय जनता पार्टी के `ऑपरेशन त्रिपुरा`का हिस्सा था तो वहां की खास एंगल की खबरें भी अखबारों और चैनलों पर...
View Articleनामवरी में कोई कमी नहीं - धीरेश सैनी
प्राइम टाइम में नामवर रवीश कुमार की वजह से एनडीटीवी इंडिया कई मामलों में अनूठा है। 4 मई 2018, शुक्रवार रात के प्राइम टाइम में हिंदी के किसी बड़े साहित्यकार को देखना इस दौर के लिहाज से कोई मामूली बात...
View Articleबेटे के नाम चिट्ठी -चार्ल्स मंगोशी
Charles Mungoshiचार्ल्स मंगोशीकी कविता।।बेटे के नाम चिट्ठी।।अब कद्दू पक गए हैं.साल की पहली मकई की फसल से हमकुछ ही दिन दूर हैं.यहाँ गाएँ भरपूर दूध दे रही हैं.अगर तुम्हारे पिता की बात न हो तोयह साल कोई...
View Articleमुक्तिबोध — उत्पीड़न और नायकत्व : असद ज़ैदी
('नया पथ'का मुक्तिबोध विशेषांक मुझे बहुत देरी से हासिल हो पाया। इस पत्रिका में छपा असद जी का यह लेख मुक्तिबोध के उत्पीड़न और हिंदी साहित्य व विचार की दुनिया में उनकी 'प्रधान उपस्थिति'का उल्लेख करते हुए...
View Articleविष्णु खरे - अपनी तरह के अलहदा
कवि पंकज चतुर्वेदी ने विष्णु खरे की रामचंद्र शुक्ल और मुक्तिबोध को लेकर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी का ज़िक्र किया तो किसी ने इस वक़्त ऐसा न करने की नसीहत देकर एतराज़ किया। 'इस वक़्त'यह अजीब कुतर्क है। पता नहीं...
View Articleविष्णु खरे—स्मरण : असद ज़ैदी
पंद्रह नवम्बर २०१७ की शाम दिमाग़ में नक़्श है। लोदी रोड श्मशान में कुँवर नारायण के अंतिम संस्कार के वक़्त अचानक दो लोगों पर नज़र पड़ी−−दीवार के सहारे रखी एक बेंच पर विष्णु खरे अौर केदारनाथ सिंह बैठे...
View Articleटीएम कृष्णाः एक रचनाकार की तड़प और उसका संघर्ष - शिवप्रसाद जोशी
“मैं सोचता हूं कि मुझे संगीत पसंद है क्योंकि इसका नैतिकता से बहुत थोड़ा सा लेनादेना है. बाकी हर चीज़ नैतिक या अनैतिक है और मैं ऐसी चीज़ की तलाश में हूं जो नैतिक न हो. नैतिकता ने हमेशा मुझे तड़पाया ही...
View Articleमेघालय: मुख्यधारा की राजनीति, खनन माफिया और उजड़ता जनजातीय जीवन
Photo: Tarun Bhartiyaइस साल फरवरी में मेघालय विधानसभा के चुनाव प्रचार के दौरान इस तरह की आशंका की खबरें छपी थीं कि चुनाव में खनन माफिया का पैसा इस्तेमाल हो रहा है। पुलिस ने उस दौरान काफी कैश बरामद भी...
View Articleकृष्णा सोबती : चान्नण मीनार जो लफंगों का चैन छीनती है
उस चान्नण मीनार कृष्णा सोबती के होने से हिंदी साहित्य के लफंगे, लम्पट, छिपे और खुले दक्षिणपंथी, फासिस्टों के चम्पू ख़ुद को कितना विचलित और अपमानित महसूस करते थे, किसी से छिपा हुआ नहीं है। इन नये-पुराने...
View Articleगाली और बुद्धिजीवी : अमोल सरोज
(देशभक्ति के नाम पर `संस्कारी टोले` सड़कों पर `दुश्मन` की माँ-बहन की गालियां निकालते हुए घूम रहे थे। हर प्रतिरोधी विचार को बल्कि हर असहमत को इस तरह गालियों से नवाज़ना उनका चलन है। हद की बात यह है कि...
View Articleबेटे, जब तक ये दलीप सिंह है, घबराने की ज़रूरत नहीं
ज़हूर साहब और निशात आपा(डीयू से सेवानिवृत्त असोसिएट प्रफेसर ज़हूर सिद्दीक़ी प्रग्रेसिव मूवमेंट से जुड़े रहे हैं। वे रटौल में अपने पुश्तैनी घर में ग़रीब लड़कियों के लिए स्कूल चलाते हैं। इन दिनों बीमार...
View Articleउत्तरआधुनिकता (पोस्टमॉडर्निज़्म) के बारे में नोट्स : शिवप्रसाद जोशी
हमको रहना है तो यूं ही तो नहीं रहना है (उत्तरआधुनिकता (पोस्टमॉडर्निज़्म) के बारे में नोट्स)शिवप्रसाद जोशीउत्तरआधुनिकता यह नहीं कहती कि तुम आधुनिकता के ऊपर से छलांग लगाकर एक नये भाषा उत्पात में अपनी...
View Articleसमझौता एक्सप्रेस: न्याय की गाड़ी पटरी से कैसे उतरी?- धीरेश सैनी
`हालांकि ऐसा हो सकता है कि उनका मामला लंबा खिंचे लेकिन उन्हें जरूर रिहा कर दिया जाएगा।``द कैरवैन` में फरवरी 2014 में छपी लीना रघुनाथ की स्टोरी के मुताबिक असीमानंद ने उनके साथ इंटरव्यू में आतंकी...
View Articleसत्याग्रही का साम्प्रदायिक इस्तेमाल : धीरेश सैनी
कल (इतवार) कई सालों बाद एनएसडी में जाकर कोई नाटक देखा। गाँधी पर केंद्रित यह नाटक `पहला सत्याग्रही` देखने जाने की एकमात्र वजह इसके लेखक रवीन्द्र त्रिपाठी रहे। वही इस कशमकश की वजह हैं कि नाटक ने जो...
View Articleकविता के अनुर्वर प्रदेश की ज़रख़ेज़ ज़मीन
भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार समारोह में शुभम श्री आई नहीं थीं। अच्युतानंद मिश्र पहले ही कविता पढ़ चुके होंगे। अदनान कफ़ील दरवेश पढ़ रहे थे। उनकी तस्वीरों और कविताओं से तो परिचय था पर उन्हें रूबरू सुनने का...
View Articleनिगरानी के भूमंडलीय तंत्र का ‘पर्मानेंट रिकॉर्ड’ : शिवप्रसाद जोशी
(संदर्भ एडवर्ड स्नोडेन, मास सर्विलांस और डिजिटल डैटा)प्रस्तुत आलेख माइक्रोसॉफ़्ट की वर्डफ़ाइल में उस कम्प्यूटर पर टाइप किया गया है जो डेल नामक अमेरिकी कंपनी का एक उत्पाद है. जिस किताब के बारे में ये...
View Articleरामचंद्र शुक्ल विवाद: कयोंकि आप मनुष्य होना नहीं चाहते
बा ख़ुदा दीवाना बाशदबा मुहम्मद होशियारअपने पिता या किसी पुराने अध्यापक से फ़ारसी की यह मशहूर और दिलचस्प कहावत बहुत से लोगों ने सुनी होगी। मतलब कि ख़ुदा के बारे में कुछ कहा तो फिर भी चलेगा मगर होशियार,...
View Articleलेनिन और हिन्दी पट्टी के अपूर्वानन्द जैसे गुबरैले बुद्धिजीवी : -धीरेश सैनी
सीपीआई से यात्रा शुरू कर चोरी वगैराह विवादों से और कांग्रेस-वांग्रेस से होकर मोटिवेटर टाइप करियर तक पहुँच जाने वाले हिन्दी के सवर्ण बुद्धिजीवी के लिए सबसे ज़रूरी क्या होता है? सेकुलर-साहसी जेस्चर में...
View Articleअपू्र्वानंद की नई उपलब्धि : वाम के मंच से वाम पर हमला
भारत में वाम और उसकी सांस्कृतिक इकाइयां क्या बौद्धिक रूप से इतनी दरिद्र हो चुकी हैं कि वे लेनिन के विरुद्ध घृणा भरे अभियान चलाकर राजसत्ता की चापलूसी पर उतारु शख़्स को ही अपना मेंटर बना लें? इंडियन...
View Articleअपने विद्वेषी पूर्वजों के मोह में धूर्तता कर रहे हैं अपूर्वानंद?
पिछली पोस्ट से आगे अपूर्वानंद से बात कर रहे युवकों ने एक सीधे सवाल के जवाब में `कलाकार के अपने भीतर रहने`जैसी तमाम बातें झेलने के बाद फिर से अपने सवाल पर लौटने की कोशिश की। दब्बूपन से ही सही पर अपना...
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